मानव उत्थान
फ्रांस के प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नास्ट्रदमस तथा अमेरिका की भविष्यवक्ता
फ्लोरेंस ने कहा है कि भारत में एक संत आध्यात्मिक क्रांति लाएगा।
उसके विचारों को पूरा विश्व स्वीकार करेगा। मानवता का उत्थान होगा।
यह इसका प्रभाव 20 वीं सदी के अन्त से शुरू होगा तथा 21 वीं के प्रारम्भ
में सर्व के समक्ष होगा। उस संत के विचारों से प्रभावित होकर एक धार्मिक
संस्था बनेगी और पूरे विश्व में मानवता का संदेश पहुंचेगा - धरती स्वर्ग
समान होगी। अधिक जानकारी के लिए देखे
‘‘राष्ट्रीय समाज सेवा समिति’’ का उद्देश्य तथा कर्त्तव्य’’
राष्ट्रीय समाज सेवा समिति दूसरे शब्दों में एक धार्मिक पंचायत है।
‘‘पंचायती का कर्तव्य‘‘
अधिकतर पंचायतें अपना कर्तव्य भूल चुकी हैं क्योंकि पंचायतें धर्मनीति
को छोड़कर राजनीति तक सीमित हो चुकी हैं। इसी प्रकार विधान सभा
जो प्रान्त की पंचायत है, वह भी राजनीति पर ही आधारित हो गई है,
धर्मनीति भूल गई है। इसी प्रकार संसद (राज्य सभा तथा लोक सभा) भी
राजनीति से पूर्ण रूप से ग्रस्त होकर धर्मनीति से दूर हो चुकी है।
राजनीति से एक पक्ष को राहत तथा दूसरे पक्ष को कष्ट सदा बना रहेगा,
केवल धर्मनीति से सर्व को लाभ होता है।
महाभारत में एक प्रकरण आता है :-
जिस समय द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था। उस समय भीष्म
पितामह, द्रोणाचार्य तथा करण इन सबकी दुर्याधन राजा द्वारा विशेष
आवाभगत की जाती थी, इसी कारण से राजनीति दोष से ग्रस्त होकर
अपने कर्तव्य को भूल गए थे। पाण्डव अपनी बेवकूफी के कारण राजनीति
के षड़यंत्रा के शिकार होकर विवश हो गए थे।
उस सभा मे
बंध जाएंगे तथा हमारा ‘‘मानवता‘‘ धर्म बन जाएगा जिसकी वर्तमान में
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जैसे सेना सीमा पर राष्ट्र सुरक्षा की सेवा करती है वैसे ही राष्ट्रीय
समाज सेवा समीति राष्ट्र के अन्दर लगी दीमक से सुरक्षा करेगी।
दीमक = काष्ट को नष्ट करने वाली चीटियों को दीमक कहते हैं जो
अन्दर से कडि़यों (ॅववकमद ठंजवदे) को खोखला व कमजोर कर देती
हैं। जिस कारण से मकान की छत गिर जाती है। घर के सदस्य भी नीचे
दब कर मर जाते हैं। इसी प्रकार निम्न दीमक राष्ट्र को खोखला तथा
कमजोर बना रही है।
स्त्र भ्रष्टाचारः-
भ्रष्टाचार रूपी दीमक राष्ट्र को खोखला तथा कमजोर कर रही है।
इसकी रोकथाम के लिए कदम उठाना।
3ण् शिष्टाचारः-
शिष्टाचार का लगभग नामोनिशान ही समाप्त हो गया है।
उदाहरण :- जब कोई व्यक्ति कार्यालय में किसी कार्यवश जाता है।
एक 25.30 वर्षीय अधिकारी या कर्मचारी 50 व 60 वर्षीय वृद्ध के साथ
ऐसा व्यवहार करता है जैसे द्वार पर खड़े कुत्ते से किया जाता है।
यह अभद्र हथियार अंग्रेज प्रयोग किया करते थे, वही हथियार भारत
की स्वतंत्राता के 68 वर्ष बाद तक चल रहा है। यह शिष्टाचार नहीं है। यह
अभद्राचार है। इसे बंद किया जाए। कार्य कानून के अनुसार करें परंतु
शिष्टाचार के साथ।
माता-पिता, सास-ससुर, अतिथि तथा मेहमान के साथ भद्र व नम्र
व्यवहार करें। सास भूल जाती है कि कभी वह भी बहू थी। इस कारण से
विवाद बनता है। बहू को समझना चाहिए जैसे आप अपनी जन्म देने वाली
माता का सत्कार करती हैं उसी प्रकार सासू माँ का सत्कार करें।
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